साल्हेवारा _विगत दो वर्षों से शिक्षकों,पालकों और बच्चों को बेवजह परेशान करने का काम किया जा रहा है आए दिन नवाचार के नाम पर दुनियां भर के चोचले स्कूलों में कराएं जा रहे हैं।शिक्षकों पर आरोप लगाया जाता है की सरकारी स्कूलों में बैठकर पढ़ाते लिखाते नहीं है।आप सभी को अवगत कराना चाहूंगा विगत 10 सालों से आए दिन नवाचार के नाम पर अलग अलग एन जी ओ द्वारा प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से प्रशिक्षण आन लाइन और ऑफ लाइन दिया जा रहा है।एक एन जी ओ का उद्देश्य और कार्य शैली लागू हुआ नही रहता दूसरा लागू कर दिया जाता है आप सभी से निवेदन है की सूचना का अधिकार लगा कर पता कर सकते हैं विगत दस वर्षों में कितनी योजनाएं लागू कराई जा चुकी ।अगर गिनते हैं तो एक सौ से ऊपर हो जाएंगे कभी एम जी एल, रीड इंडिया रीड,संपर्क फाउंडेशन,खिलौना आधारित प्रशिक्षण, एफ एल एन, सुघर पढ़ाईया,मोहल्ला कक्षा,आदि।प्रशिक्षण के नाम पर कुल मिलाकर सरकारी बजट का बंदर बांट किया जाता रहा है शिक्षकों को दिन भर मोबाइल में आन लाइन रहकर विभिन्न प्रकार की जानकारी प्रविष्ट करना है ।ऐसा नहीं है की सरकारी स्कूल का शिक्षक पढ़ना लिखना और पढ़ाना लिखाना नही जानता है बल्कि सरकार और उनके नुमाइंदे उनको ऐसा करने नही देते हैं।आप शिक्षक को फ्री हाथ छोड़ दीजिए आप कैसे भी सिखाए बच्चों को उनकी कक्षा अनुसार सीखने सिखाने की जिम्मेदारी आपकी है।शिक्षक अब शिक्षक न होकर मात्र एक चौकीदार हो गया है कोई भी आता है कोल्हू का बैल समझकर जोतकर चला जाता है क्या पढ़े लिखे क्या अनपढ़।सरकारी स्कूल में जहां दर्ज अनुसार शिक्षक है निश्चित ही बेहतरीन पढ़ाई लिखाई होता है। अब किसी सरकारी स्कूल में एक या दो शिक्षक हैं और पांच कक्षा है 70/80 बच्चें हैं और ऊपर से दुनियां भर की सरकारी योजना उसके सिर पर घोड़े गधे की तरह लाद दिए हैं तो वो बेचारा करे तो क्या करे जितना हो सकता है करते हैं अपनी क्षमता अनुसार कोई रोबोट या अल्लाह दिन का चिराग तो हैं नहीं।
विगत चालीस पचास साल से हम देख रहे हैं की बच्चे और शिक्षक 10 महिना स्कूलों में पढ़ाई लिखाई करते हैं और परीक्षा परिणाम घोषित होने के बाद मई और जून में ग्रीष्मकालीन अवकाश में रहते हैं।बच्चें अपने नाना नानी, दादा दादी और अन्य रिश्तेदार के साथ घूमते है दस महीने की बोझ से मुक्त होते हैं उसके बाद जुलाई से पुन:नई ऊर्जा के साथ पढ़ाई लिखाई में जुट जाते हैं और यह मनोवैज्ञानिक तरीके भी है।जो शिक्षक लोग अपने घर परिवार से दूर रहकर शिक्षिकीय कार्य करते हैं वे भी परिवार से मिलने जाते हैं जिससे उनका भी दिमाग फ्रेश हो जाता हैं।
समर कैंप के नाम पर जो सीखने सिखाने की बात किया जा रहा है वह शिक्षक पूरे साल भर अपन स्कूल में करता है।प्रत्येक शनिवार बस्ता मुक्त शनिवार को होता है जिसमें सारी गतिविधियां संपन्न कराई जाती है।सरकारी पैसों से देश विदेश की भ्रमण करते हैं और वहां की योजना लागू करवाने का प्रयास करते हैं।सरकारी बंगले,सरकारी कार्यालय और ए सी में बैठकर जो लोग योजना बनाते हैं जरा बता किया जाए उनके बच्चें गर्मी में घूमने कहां जाते हैं। राज्य कार्यालय से मिलने वाले आदेश में बिंदु क्रमांक 7 में स्वैच्छिक लिखा हुआ है और साथ ही शाला प्रबंधन समिति की अनुमति की बात कहीं जा रही है परंतु स्थानीय कलेक्टर, डी ई ओ, बी ई ओ,संकुल समन्वयक अनिवार्य बता कर शिक्षकों को परेशान कर रहें हैं कहीं कहीं पर मौखिक रूप से अलग अलग धमकियां भी दी जाती है। अभी पूरे छत्तीसगढ़ में इतनी तेज गर्मी है जहां ए सी, कूलर,पंखे तक काम नही कर रहें वहां समर कैंप के नाम पर शिक्षकों, पालको और बच्चों को परेशान किया जा रहा है ।आप लोग जाकर देख भी सकते हैं कितने बच्चे स्कूल आ रहे हैं बमुश्किल से 10 से 12 ही बच्चे स्कूल आते हैं जहां 80/100 बच्चे दर्ज हैं अत:यह तुरंत बंद होना चाहिए।