राजनांदगंाव. महान समाज सुधारक एवं आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती जी की शुभ मंगल जयंती को महत्तम परिप्रेक्ष्य में नगर के संस्कृति विचार प्रज्ञ प्राध्यापक डॉ. कृष्ण कुमार द्विवेदी ने विशिष्ट आह्वान चिंतन टीप में बताया कि ”सत्यार्थ प्रकाश” जैसे अनुपम ग्रंथ के प्रणेता महर्षि दयानंद ने अपने गुढ़ विचारों, अदभुत व्याख्यानों से भारतीय शिक्षा, संस्कृति एवं वैदिक आध्यात्म दर्शन को श्रेष्ठ, श्रेयष्कर स्वरूप में स्थापित किया और भारतीय शास्त्रार्थ परंपरा को उन्नत कर आर्य सनातन संस्कृति की संरक्षा-संवर्धन, कर अतिशय गौरवशाली कार्य किया। महर्षि दयानंद ने तत्समय के जन-जन, असंख्य-जन को अनुद्योग, आलस्य, अकर्मण्यता के स्थान पर उद्यमी, परिश्रमी और कर्मठ बनने की विशिष्ट अभिप्रेरणा देकर सनातन संस्कृति के मूल-गूढ़ तत्वों को आत्मसात कराया। समाज में फैले जाति, वैषम्य, अस्पृश्यता और भेदभाव को दूर किया। आर्य समाज के सिद्धांतों का व्यापक, प्रचार-प्रसार किया तथा उस समय के सभी बड़े-बड़े नगरों में डी.ए.बी. हाईस्कूल, महाविद्यालय एवं आर्य समाज मंदिरों की स्थापना कर महर्षि दयानंद ने वैदिक शिक्षा और संस्कृति के प्रचार-प्रसार में अमूल्य योगदान किया। वस्तुत: महर्षि दयानंद जी सामाजिक, नैतिक और धार्मिक उत्थान की आदर्श प्रतिमूर्ति हुए जिनके विचार अवधारणायें संपूर्ण देश-धरती के लिए सर्वसमय काल में अनुकरणीय है और भारतीय संस्कृति की उत्कृष्टता सर्वश्रेष्ठता को अभिप्रमाणित करते हैं। आगे डॉ. द्विवेदी ने युवा-किशोर-प्रबुद्ध पीढ़ी को महर्षि दयानंद जी के उपदेशों का मनसा-वाचा-कर्मणा से आत्मसात कर देश-प्रदेश को अखिल विश्व में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का श्रेष्ठतम उद्धरण बनाने में अपनी अनिवार्य अहम भूमिका अदा करने का भी आह्वान किया।