नारी गरिमा को प्रतिष्ठा देने वाली कृति है, छत्तीसगढ़ की आत्मा

 

एक शाम मास्टर जी के नाम में कवि / साहित्यकारों ने गाई बख्शी जी की विरुदावलि

राजनांदगांव / शहर के ऋद्धि-सिद्धि कालोनी में एक शाम मास्टर जी के नाम साहित्यिक संगोष्ठी एवं काव्य संध्या का आयोजन किया गया। हिंदी साहित्य के महावीर द्विवेदी युगीन महान साहित्यकार पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी को कृतज्ञता पूर्वक याद करने आयोजित इस साहित्यिक आयोजन का विषय उनकी चर्चित कृति छत्तीसगढ़ की आत्मा पर रखा गया था। बख्शी जी के पौत्र के प्रभात बख्शी “चंद्र” वार्ड पार्षद डूरेंद्र साहू,व कालोनी अध्यक्ष नरेश साहू की उपस्थिति में आयोजित साहित्यिक संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन हास्य-व्यंग्य के कवि पद्य लोचन शर्मा “मुंहफट” ने किया। दिग्विजय कालेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ शंकर मुनि राय ने इस पर कहा कि द्विवेदी युगीन चर्चित पत्रिका सरस्वती के संपादक बख्शी जी महान साहित्यकार थे। बड़े- बड़े साहित्यकार उस पत्रिका में प्रकाशित होने के लिए तरसते थे। नहीं छप पाने की स्थिति में कवि सुमित्रानंदन पंत जैसे राष्ट्रीय कवि उनसे मिलने दिग्विजय कालेज तक दौड़े चले आते थे ।
*छत्तीसगढ़ की आत्मा है “कारी”*
वरिष्ठ कवि/ साहित्यकार एवं लोक कला व संस्कृति कर्मी आत्माराम कोशा “अमात्य,” ने कहा कि कथा सम्राट मुंशी में प्रेमचंद की तरह श्री बख्शी जी ने अपनी कृतियों में नारी गरिमा को प्रतिष्ठा दी है। उन्होंने कहा कि वहीं रचना प्रतिष्ठा और प्रसिद्धि पाती है जिस पर फिल्म बने, नाटक का मंचन हो। प्रेमचंद की गोदान की तरह बख्शी जी की झलमला व छत्तीसगढ़ की आत्मा का मंचन हुआ है। रंगकर्मी रामचंद्र देशमुख जी ने इस पर सुप्रसिद्ध नाटक “कारी” का मंचन किया है। जिसमें यहां की एक कुप्रथा को उजागर करते हुए ममतामयी नारी के उज्जवल पक्ष बेहतरीन ढंग से को उभारा गया है।
वरिष्ठ साहित्यकार कुबेर साहू ने बख्शी जी के व्यक्तित्व के अनेक पहलुओं को छुआ और उनकी कृतियों का उदाहरण देते हुए उन्हें को आदर्शवाद व यथार्थवाद का महान साहित्यकार बताया।
प्रो० के,के द्विवेदी ने बख्शी जी की शतदल,अश्रुजल व झलमला सहित उनके चर्चित निबंध क्या लिखूं का जिक्र किया।
मुख्य अतिथि प्रभात बख्शी ने अपने दादा जी द्वारा उन्हें शतदल कविता पढ़ने देने की बात बताई और कहा कि वे अपने छात्रावस्था से ही दादा जी की रचनाओ को पढ़ता था।
इस दौरान डॉ चंद्र शेखर शर्मा सहित अन्य कवि/ साहित्यकारों ने बख्शी जी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर चर्चा कर हिंदी जगत में उनके साहित्यिक योगदान को वरेण्यीय बताया।
*काव्यायोजन में आपरेशन सिंदूर की रही गूंज*
कार्यक्रम के काव्य सत्र में हास्य-व्यंग्य के कवि वीरेंद्र तिवारी वीरु ने मां सरस्वती की वंदना कर पाकिस्तान को जमकर गरियाते हुए कहा – सरहद पर दुश्मन सिर उठाए तो मिटा कर खाक कर देगी सिंदूर वाली,। इसी तरह कवयित्री सुषमा शुक्ला “अंशुमन” ने- मुंड माला पहन रण चंडी बन जाती है नारी,, सिंदूर को लजाना छोड़ दें,,गाकर नारी के रण चंडी रुप को दिखाया।
कवि/कथाकार मानसिंह मौलिक ने आपरेशन सिंदूर को बदला अभी अधूरा है कहकर भारतीय सेना की जोश और जज्बे का गुनगान किया। वहीं वरिष्ठ कवि साहित्यकार आत्माराम कोशा “अमात्य” ने – बूरी नजर वालों को घर घुस कर मारता है,, आपरेशन सिंदूर इसका वैश्विक संदेश है कहा।
ओमप्रकाश*अंकुर” ने देख रे; पाकिस्तान भारत का आपरेशन सिंदूर , कहा, वहीं लखन लाल “लहर” ने आषाढ़ आगे का गान किया। इसी तरह कवि मुंहफट ने, बादर देवता दे के नेवता सब झन ला, पानी परसे,, गाकर वाह – वाही पाई। कवि अनुराग सक्सेना व राजकुमार चौधरी ने गजल सुनाकर माहौल में छाए रहे। वहीं ओजस्वी कवि शैलेष गुप्ता ने चुटकी भर सिंदूर, चेहरे का नूर बढ़ा देती है कहा वही महेंद्र बघेल “मधु” महावर, चूड़ी, कुंकुम, बिदीं की बात कहते हुए नारी को नारायणी बताया। शंकर मुनि राय ने पत्नी चालीसा सुनाकर लोगों की तालियां बटोरी वहीं बख्शी जी के पौत्र प्रभात बख्शी ने कवि ! तू युग की राह मोड़ दे,,/ रस अलंकार, छंद, अनुप्रास गान का राग छोड़ दें की काव्य पंक्तियां पढ़ कर माहौल को तरन्नुम मय बनाया। इस दौरान विभिन्न क्षणिकाओं सहित कवि थंगेश्वर साहू के संचालन में डोहरु राम, अनंत शर्मा, आदि कवियों ने काव्य पाठ कर माहौल को उंचाई दी। अंत में प्रबुद्ध व्यक्तित्व अमलेंदु हाजरा ने उपसंहार व्यक्त कर कार्यक्रम का समापन किया।

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