मां पार्वती के तपस्या के समय तमाम पशु-पक्षी उसे घेर कर बैठ जाते थे-शास्त्री ईश्वरचन्द्रव्यास

मां पार्वती के तपस्या के समय तमाम पशु-पक्षी उसे घेर कर बैठ जाते थे-शास्त्री ईश्वरचन्द्रव्यास

० *कथा सुनने वरिष्ठ नेता, जनप्रतिनिधियों व समाज सेवियों सहित श्रद्धालुओं की उमड़ रही भीड़

० बाजे- गाजे के साथ शिव जी की निकली बारात,,, राग-रागनियों के सांगीतिक माहौल में कथा श्रवणकर आनंद तिरेक हो रहे श्रद्धालु.

राजनांदगांव / श्री चन्द्र मौलेश्वर महाकाल के नाम पर लखोली विकास नगर स्थित डागा भवन के शिव धाम में जूनागढ़ (गुजरात) से पधारे सुप्रसिद्ध कथा वाचक शास्त्री पं. ईश्वरचन्द्र व्यास के श्री मुख से रोजाना दोनों टाइम भगवान शिव की कथा चरित व महिमा ज्ञान की अविटल गंगा बह रही है। जिसमें अवगाहन के लिए राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेताओं, जनप्रतिनिधियों व समाज सेवियों सहित धर्मप्रेमी श्रद्धालु जनों की बड़ी संख्या में उपस्थिति हो रहे है। कथा श्रवण के लिए पधार रहे लोगों का डागा परिवार द्वारा अगुवानी व आवभगत की जा रही है। आज श्री शिवमहापुराण कथा के बीच भक्तों द्वारा बाजे-गाजे के साथ धूमधाम से शिवजी की भव्य बारात निकाली गई। जिसे देखकर भक्त जन श्रद्धा से भर उठे।

भक्ति में जिज्ञासा आवश्यक

राग-रागनियों से भरे सांगीतिक माहौल में कथा सुना रहे कथावाचक शास्त्री ईश्वर चन्द्र जी ने आज की कथा में मां पार्वती की भगवान शिव को अपने पति रूप में पाने के लिए की घोर तपस्या के बारे सविस्तार बताया और कहा कि मां पार्वती ने हजार साल तक कंदमूल, फल पत्तियां खाकर तपस्या की ।बेल की पत्तियों का आहार किया। महराज जी ने बताया कि मां पार्वती जब लम्बे समय तक तपस्या में बैठ जाती थी तो वनप्रांतर के सभी पशु-पक्षी उसे घेर कर बैठ जाते थे। जिसमें एक ही जगह सिंह होता था तो गाय हिरण व अन्य जानवर होते थे ।चूहे के साथ बिल्ली होती थी।सर्प भी होते थे तो गिद्ध-चील-बाज भी होते थे लेकिन कोई किसी का भक्षण के लिए सोचता भी नहीं था। महराज जी ने कहा कि भक्ति में जिज्ञासा होनी चाहिए। जिज्ञासा कोई कर्म नहीं ,विचार है। जो सुना है वही आपके मन में है वही विचार के रूप में आएंगे। इसीलिए श्रवण की महत्ता है। अच्छी चीजे सुननी चाहिए। सत्संग करनी चाहिए।

सामने बैठ जाते थे सर्प

महराज जी ने बताया कि ईश भक्ति में डूबे तपस्या रत लोगों के सामने पशु पक्षियों का आकर बैठ जाना कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन इसमें साधक का अपने ईश के प्रति सही निष्ठा बनी होनी चाहिए। महराज जी ने बताया कि महाराष्ट्र के एक संत नित्यानंद स्वामी व महर्षि रमन के सामने साधनावस्था में एक जहरीला सर्प फेन काढ़े आ कर बैठ जाता था। इससे दोनों महान आत्माओं को किसी प्रकार भय या संकोच नहीं होता था। ईश साधकों के साथ यह आम बात है। उन्होंने साथ ही कहा कि यदि कोई सांप आपके सामने आकर चुपचाप बैठ जाए तो यह समझ लेना कि आप में कुछ न कुछ विशेष अवश्य है। महाराज जी ने कहा कि प्रत्येक एक हजार व्यक्ति में से एक की कुण्डली जागरण की स्थिति होती है लेकिन उसे मालूम नहीं रहता। इसका यह प्रमाण है कि आपके नजदीक सर्प बैगर कोई नुकसान पहुंचाए बैठ जाएगा। महराज जी ने आज की कथा में श्री रामकृष्ण परमहंस जी की कामना विहिन होने की बात बताई व कहा कि वे अपने मन में कोई कलंक नहीं रहने देने की बात कहते थे। उन्होंने अपने से काफी छोटी पत्नी शारदामणि को पुत्रीवत रख करज्ञान ध्यान व तप-साधना में प्रवृत किया। वो साक्षात जगदम्बा की अवतार थी।मां पार्वती की घोर तपस्या के बाद

महराज जी ने भगवान शिव के मां पार्वती के साथ विवाह की बात सविस्तार बताई। इस दौरान कथा स्थल पर बाजे गाजे के साथ शिव बारात का माहौल बना रहा है कथा श्रवण के लिए शहर के समाजसेवी दामोदर दास मूंदड़ा, पूर्व सांसद अशोक शर्मा, खूबचंद पारख, दीपक बुद्धदेव, गायत्री शक्ति पीठ के नन्द कुमार किशोर सुरजन, सूर्यकांत चिंतलाग्या, चेम्बर आफ कामर्स के अज birthdayय भसीन, दिलीप इसरानी, विष्णु लोहिया, महेश साहू, सुनील टावरी सहित सूरत अहमदाबाद-महाराष्ट्र आदि जगहों से पधारे धर्मप्रेमी श्रद्धालु जन उपस्थित थे। उक्ताशय ‌की जानकारी राजेश डागा ने दी।

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