राजनांदगाँव/राजनांदगाँव के पूर्व महापौर अजीत जैन ने कहा कि, राजगामी संपदा राजनांदगांव के वैष्णव राजाओं की संपत्ति है, जिसमें राज्य शासन द्वारा आज तक वैष्णव सम्प्रदाय को अध्यक्ष पद से मनोनीत नहीं किया गया। महंत राजा दिग्विजय दास पूरे महल को शैक्षणिक कार्य हेतु दान कर दिया, जो कि छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा दिग्विजय महाविद्यालय विशाल भूखण्ड व सरोवरों के बीच संचालित है। रानी सूर्यमुखी देवी संपदा की संपत्ति से राजधानी रायपुर व राजनांदगांव में पेयजल हेतु अपना सर्वस्व दान किया। रायपुर में घासीदास संग्रहालय व राजनांदगांव में सर्वेश्वरदास म्युनिस्पल स्कूल, बलरामदास स्टेट स्कूल, टाऊन हॉल, नगर निगम परिसर, दिग्विजय स्टेडियम हेतु जमीन सभी राजा बलरामदास द्वारा स्थापित किया गया।
राजनांदगांव में बी.एन.सी. मिल उद्योग व रेल्वे की सुविधा व ट्रेन स्टॉपेज के एग्रीमेन्ट के साथ अपनी जमीन को दान किये। अभी हाल ही में पूर्व मंत्री रविन्द्र चौबे के विधान सभा क्षेत्र थान खम्हरिया में सैकड़ो एकड़ जमीन पूर्व मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल व पूर्व मंत्री श्री रविन्द्र चौबे के प्रभाव दबाव से राजगामी के पूर्व अध्यक्ष श्री विवेक वासनिक ने उद्यानिकी महाविद्यालय को जमीन दी। पूर्व कार्यकाल में अनेको वित्तीय अनियमितता, नियम विरुद्ध बंदरबांट संपदा के दुरूपयोग की जानकारी भी है, जो जाँच का विषय है ?
अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष/ सदस्य मुस्लिम वर्ग से, गोसेवा आयोग का यादव समाज से, अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जनजाति का अध्यक्ष/ सदस्य भी उसी वर्ग व समाज से मनोनीत किया जाता है तो राजगामी संपदा जिसका अध्यक्ष व सदस्य पद वैष्णव समाज का हक व अधिकार होने के बावजूद लगभग तीन दशक से वैष्णव समाज के साथ कपटपूर्ण भेदभाव कर उन्हें अध्यक्ष पद से वंचित किया गया।
राजगामी के जितने भी संस्थान, व्यापारिक प्रतिष्ठान, शासकीय, अर्धशासकीय, निजी भूमि, शैक्षणिक संस्थाओं को आबंटन आदि में उनके नामों के पीछे वैष्णव शब्द का नया बोर्ड/ फ्लैक्स भी लगाया जाए, जिससे आम जनता को सही जानकारी मिल सके, जिससे वैष्णव समाज राजनांदगांव में गौरवान्वित व सम्मानित महसूस कर सके।
श्रीमान् जी से अनुरोध है कि राजगामी अध्यक्ष पद हेतु श्री मनोज निर्वाणी व वैष्णव सम्प्रदाय के दो सदस्य को मनोनीत करने की कृपा करें। समाज के लोगों को मनोनीत नहीं करने पर जनप्रतिनिधि, वैष्णव समाज व अन्य समाजों के साथ मिलकर आंदोलन करने को मजबूर होना पड़ेगा, इसके साथ ही माननीय उच्च न्यायालय की शरण में न्याय हेतु जाना पड़ेगा।